BAAL JHAROKHA SATYAM KI DUNIYA HAM NANHE MUNNON KA

Friday, April 29, 2011

गाड़ी हुर्र हुर्र चलवाऊँ

बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --

इतनी ढेर किताबें लेकर
मम्मी कैसे जाऊं
छोटे छोटे पाँव ये लेकर
नाप -नाप थक जाऊं
धूप -कभी -बारिस के कारण
लेट कभी हो जाऊं
मैडम सर डांटे तो रोकर  
हिचक सिसक समझाऊँ
होमवर्क सब करवा दो ना
पंडित -बड़ा -जल्द बन जाऊं
पास नर्सरी फिर देखो ना
गाड़ी हुर्र हुर्र चलवाऊँ
डांटू कभी मै बच्चों  को ना
खेल खेल में उन्हें पढाऊँ
आयें छोड़ के रोना धोना
ढेर किताबें कम करवाऊं !!

 सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
३०.०४.२०११

Tuesday, April 26, 2011

HAPPY BIRTH DAY TO YOU LALLA SATYAM

बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --


अम्मा देखो मेरे जैसा 
चंदा कैसे खिसक रहा है 
चाँद सितारों के संग खेले 
मुझसा इतना दमक रहा है 
बिना पंख के लेकिन कैसे
अम्मा ऐसे उड़ता जाता ??





जैसे हनुमान हों - पर्वत लेकर


उड़े गगन बादल के संग -संग 
बादल पीछे रह -रह जाता 

थोडा हमको भी सिखला दे 
चिड़ियों से दोस्ती करा दे 
बाल्टी भर के दूध पिला दे 
काजू और बादाम खिला माँ 
कुछ भी कर मेरी प्यारी अम्मा 
मुझको भी उड़ना सिखला दे 

सूरज चंदा को छू आऊँ 
खेलूँ -तुझको और चिढाऊँ 
तू भागे मेरे -पीछे -पीछे 
कितना मजा मै -खिल खिल जाऊं 
तेरे लिए तोड़ तारे माँ 
झोली भर के मै ले आऊँ 

बाल झरोखा - सत्यम - को आज उसके जन्म दिन पर  समर्पित

















अम्मा देख न मै कितना बड़ा हो गया अब दौड़ो मेरे पीछे पीछे ...












जुग जुग जिओ हमारे लाल 
माँ की अपनी रखना लाज 
चरण वंदना उसकी कर के 
लेना पग पग तुम आशीष



जहाँ रहो तुम सूरज जैसे 
दमके जाओ 
कमल के जैसे तुम खिल जाओ

सारे प्यारे 
इस दुनिया के 
जो हैं न्यारे 
दोस्त तुम्हारे 







अपनी संस्कृति

अपनी मिटटी 

नाम को अपने 
मन में धारे 
अमर करो 
बढे चलो तुम -बढे चलो 
जय हिंद जय भारत !!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर
२७.४.१९९७

Friday, April 22, 2011

अमृत प्याला -बचपन पायें



अम्मा -जला -इधल  आओ न  
देखो छामा आई









photo with thanks from other source 

बन्ती घूम लहा पीछे है
छाला दूध पिलाई !

अम्मा आटा गूंथ रही थी
आटा - हाथ लगाये दौड़ी
गाल में मुन्नी के वो आटा
हंसती जरा लगायी !!

सच श्यामा मेरी गैया ने
बंटी1 को - सारा दूध पिलाया !!

ये छब छाले अच्छे ना हैं
कौवा लोटी ले के भागे
बंटी दूध पिए उछले है
मोती2 बैठा ताके !


जब जब अम्मा लिए कटोली 
घल से  -मै- बाहल निकलूं  

बिल्ली मौछी भी आती हैं
दूध-हमाला- पी जाती
दस -दस चूहे उछल भाग कल
हमें चिढाते -काट किताबें
अपने बिल में घुस  जाते
मौछी को भी प्याल हुआ है
चूहों को है दोस्त बनाया
बैठी देखें चूहों ने है खूब छकाया


बेटी की तुतली बातें सब
अम्मा का मन जीतें
काम काज सब छोड़े आतीं
बार-बार बस चूमें !

ऐसी ही तितली थी वो भी
उडती फिरती घर आँगन
बापू के काँधे पे बैठी
उछले छूती चाँद गगन !

बैठ खेलती धूल आज भी
तुतलाती-हंसती -रोती
मुन्नी के संग गुडिया गुड्डा 
छुपा -छुपी सब खेले जाती


मेरे आँगन की तुलसी वो
दिया जला उजियारा फैला
जैसे चाँद गगन में देखो
अठखेली कर -हर मन पैठा !

पांच साल जब मुन्नी ना थी
कितना सूना लम्बा दिन
नैन हमारे रहे बरसते
अँधियारा था कृष्ण पक्ष सा मेरा मन !

लिए बलैयां  गोद उठाये
भरे अंक अब लहर -लहर वो
सागर-सीपी-मोती पाए
अमृत प्याला बचपन का
 बस -पी-पी जाये

ले ले ले मेली- प्याली बेती
धूल है फिल से आज लपेती
लुक जा मै छुक-छुक कल आऊँ 
छुक -छुक गाड़ी तुझे घुमाऊँ 
लोना- ना -आ मै नहलाऊँ 
छप -छप   पानी मजा लगाऊं !!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५ 

बंटी1(बछड़ा)
मोती2 (कुत्ता)
जय हिंद जय भारत





बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --

Wednesday, April 13, 2011

चार बजे जब मुर्गा बोले पौ फटते ही उठना

बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --

चार बजे जब मुर्गा बोले पौ फटते ही उठना

अम्मा देखो मेरी खिड़की
दस दस चिड़ियाँ क्यों आ जाती
चूं चूं चूं चूं
चूं चूं कर के




(photo with thanks from other source)
भिनसारे ही मुझे उठाती
इनको ना है पढना लिखना
चूल्हा चौका ना कुछ काम
दिन भर खाली गाना गाती
करती चिड़ियों को बदनाम 
देर रात तक मै पढता हूँ 
प्रात काल ही मुझे उठातीं  
अलसाया मै दिन भर घूमूं
थका-जम्हाई मुझको आती

अम्मा बोली मेरे प्यारे
कल से जल्दी सोना
देती वे सन्देश तुम्हे कि
चार बजे जब मुर्गा बोले
पौ फटते ही तुमको उठना

मलयागिरि की चली हवाएं  
तांबे सा सूरज है निकला
कमल फूल सब खिले हुए हैं
शीतल नदिया स्वर्णिम धारा

जैसे दुल्हन उषा सजी है
टेसू लाल महकते फूल
मन -मयूर सब नाच रहे हैं
खिंचे सभी आते -घर भूल 

घूम रहे हैं सब बतियाते 
निर्मल मन -गंगा की धारा
झरना झर -झर दौड़ा मिलता 
कल-कल -कल-कल
नदिया बहती चली -उमड़ती 
सागर -प्रिय-ने उसे पुकारा

 सुबह-सुबह कुछ बादल आये 
हाथ मिला ताकत दिखलाये 
इंद्र-धनुष सा रंग दिखाए 
मोहे मन बहला-फुसलाये 
चंदा को ले गए -उड़ाए

उजियारा देती वो चंदा
रात-रात में जाग रही थी 
घूम रही थी तारों के संग
रजनी देखो -कितना रोई
मोती सा आंसू छलकाए
सूरज 'काका' को देखे ही
चंदा तारे -रजनी सारे
डर के मारे छुपे -छुपाये  

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर
13.04.2011

Monday, April 11, 2011

बिल्ली बोली म्याऊँ -म्याऊँ

बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --

बिल्ली बोली म्याऊँ -म्याऊँ 




(photo with thanks from other source)
छुपो सभी मै आऊँ 
हांफ हांफ कर दौड़ो ना रे 
आज तुम्हे ना खाऊँ !!

आज से हमने व्रत है रक्खा 
चूहे भाई सुन लो 
बहुत हो चुका वैर ये अपना 
अब आओ मिल खेलो !

चाहे मेरी पीठ पे बैठो 
मूंछें मेरी मरोड़ो
घंटी चाहे गले बांध दो 
डर डर मत जीना हे प्यारे 
बिल से बाहर निकलो !

चूहा बोला -बिल्ली मौसी 

(photo with thanks from other source)

सुना था हमने कुछ गुण तेरे 
नौ सौ चूहे खायी !!
अभी खाओगी पक्का- क्या ???
क्या हज कर के  -हो -आई ?

हम बच्चों को दादी अम्मा 
जैसे प्य्रार -करे हैं -
खेलूँगा सब साथ तुम्हारे 
जब तेरे दांत गिरे हैं
जब तू भाग नहीं पायेगी 
पीछे पीछे मेरे 
लेकर तुलसी माला जब 
राम -राम बस फेरे !!!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

Sunday, April 10, 2011

मेरा तोता

बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --
        
         मेरा तोता


सब को प्रिय वह मेरा तोता














(छवि-फोटो साभार-धन्यवाद के साथ अन्य स्रोत से )
जो कुछ खाता उसको देता 
संग बतियाता संग में सोता
उसी जगह-घर-जहाँ मै होता

नहीं कहा-दुर-देता जाता
जाति-नीच-बैठे बस खाता
साध यही -घर आये -खाए
दे आशीष शोर मचाये

डरता हूँ ना वो रट लाये
कैद किया इसने मन भाए
हरा देख अब कुछ पछताए 
साथ खोजकर -उड़ ना जाये 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 
पटना २४..1993 

Saturday, April 9, 2011

The resolution of the year

बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --
The first will be never to yawn,
in public be it noon, dusk or dawn.

The second resolution will be never to race,
because if, then many problem one have to face.

The third will be always do competition,
because it reduce our hesitation.

The fourth will be all things to learn,
which will help us in future to earn.

The fifth will be never to hunt,
by which one can go jail for his stunt.

The sixth will be to make good health,
by which one can get good wealth.

That's all the resolution of this year,
which one have to follow every year.

When we make our years resolution,
We make our life's solution.

By Satyma Shukla
managed by surendra kumar shukla


Thursday, April 7, 2011

मुठीयन भर बाल नोच मार देत पैयाँ"

बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --

आइये आप को हम अपने दर्द से अलग आज बाल- झरोखा दिखाएँ बाल रस हम सब के मन में समां जाये हम बच्चे सा सच्चा मन ले निःस्वार्थ नाच कूद मिल जुल , कभी झगड़ भी पड़ें अगर तो फिर मिल जाएँ -खेलें संग संग गले लगायें -





"मुठीयन  भर बाल नोच मार देत पैयाँ"  
टुकुर टुकुर ताकि मातु ममता की छैंया
किलकि किलकि रोय उठत देखि परछैयां


                     ( फोटो साभार और धन्यवाद के साथ  अन्य स्रोत से )
कबहुं हंसत फिर रिसात लेत ना कनैयां
चीख सुन दौड़ धाय लेत माँ बलैंया
गोद में लुकाय ढाकि आँचरा कि छैयां
गाई गान सुधा पान हरषि हरषि मैया
कोष देत सब लुटाई नाचत अंग्नैया
सो जा ललन लोरी गाई  रही मैया
नटखट वो पलक मूँद -झूंठ- लरकैयां
"मुठीयन  भर बाल नोच मार देत पैयाँ"  
 छनकत कंगना कबहु छनकी पैजनिया
मोहि लेत- बूँद छलकि जात भरी अँखियाँ
उमड़-घुमड़-प्रीति-प्यार-बादरा कि नैंया
खेल रही माँ बिभोर लरकन कि नैया
लहर -लहर -ह्रदय-सिन्धु-चूमि के कलईया 
चूमि मुख गात चूमि पागल सी मैया 
नजर से लुका छिपाई उर में भरत मैया 
कजरा-नैनो में   झाँकि माथ टीकि  पैंया 
"भ्रमर' ख्वाब अंक भरे खोयी हुयी रनिया
खोलि मुख चूमि दोउ नाच -बनी-बतियाँ . 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
..२०११
(लेखन ..१९९६ हजारीबाग झारखण्ड)