BAAL JHAROKHA SATYAM KI DUNIYA HAM NANHE MUNNON KA

Saturday, July 23, 2011

हम बच्चे सच्चे हैं मन के फूल के जैसे प्यारे हम



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सूरज से हम रहें चमकते 
चम् -चम् - चम्- चम् 

इतनी उर्जा भरी हुयी 
जहाँ निकलते जीवन देते 
सब को  दम ख़म 
हम बच्चे सच्चे हैं मन के 
फूल के जैसे प्यारे हम 


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माँ धरती मुस्काए कहती 
सदा निछावर हम पर रहती 
प्रात उठे हम उन्हें उठाते 
मुस्काते अंगडाई ले के 
नयी चेतना नवल सृजन से 
रश्मि -प्रभा ज्यों कमल खिलाते

रग रग  -भक्ति भाव भर जाते 
जोश दिए प्रेरित कर जाते 
हम बच्चे सच्चे हैं मन के 
फूल के जैसे प्यारे हम 
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उठो लाल हे अमर सपूतों 
ताल से ताल मिला कर चल दो 
कुछ अनीति दुर्गुण दुराव जो 
मन से अपने बाहर कर दो 
गले लगे गोदी चढ़ उनके 
मूल -मन्त्र हंस -हंस सिखलाते 
हम बच्चे सच्चे हैं मन के 
फूल के जैसे प्यारे हम 
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सत्य अहिंसा संस्कार से 
सज्जित -सज्जन-मन तन रख के 
हाथ पाँव मारे जग खेले 
अहम् क्रोध ईहा लिप्सा से
बच मानव -मानवता रचते 
हम बच्चों सा -सब का हो ले 
हम बच्चे सच्चे हैं मन के 
फूल के जैसे प्यारे हम 
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मुस्काते हम उन्हें हंसाते
भरें कोष -ना-सभी लुटाते
पीड़ा उनकी सब हर जाते 
नजर मिले -हर सुख  दे जाते 
तुम पावन हो -  ईश तुम्ही हे !
निर्मल मन हम उन्हें दिखाते 
हम बच्चे सच्चे हैं मन के 
फूल के जैसे प्यारे हम 
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हम बच्चे सच्चे हैं मन के 
भेद भाव माया सब भूले 
बन बच्चे हंसकर तो देखें 
सहज सुगम फिर सब जीवन में 
सूरज को फल समझे -खाने -
दौड़ें -आसमान पर विजय करें 
या चन्दा को बना खिलौना 
शनि -मंगल पर उड़ें चलें 
हम बच्चे सच्चे हैं मन के 
फूल के जैसे प्यारे हम 
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all the photos taken from google devta/net with thanx
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१७.०७.२०११ जल पी बी ७.३० पूर्वाह्न 



बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --

Wednesday, July 20, 2011

तरबूजा

ऊपर दिखता कुछ है मम्मी 


अन्दर में कुछ होता 

(both photos taken from 123RF.com /googal/net with thanks)
जैसे हरा है   ऊपर दिखता
लाल रंग अन्दर तरबूजा  
ऊपर जितना ये कठोर है
कोमल अन्दर नरम भरा 
तिक्त है ऊपर -रस तो इसका 
मीठा अन्दर भरा हुआ 
मन मेरा भी मधुर मधुर हो
शीतल सब को कर जाये
आओ गुण देखे हम उसके
बाह्य दिखावे पर ना जाएँ !!


बच्चों अब तो गर्मी जा रही है इनका काम कुछ ख़त्म हो जायेगा मगर अभी तक तो ये बहुत आनंद दिए -गोल मटोल जैसे भूमंडल -ग्लोब , एक बार घुमा दो तो लट्टू जैसे घूमते रहते हैं --
फिर मिलेंगे 
बाबा भ्रमर देव 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२६.०६.२०११
जल पी बी 


बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --

Saturday, July 16, 2011

कुल्लू -शिमला घूमूँगा

इस गर्मी की छुट्टी मम्मी
कुल्लू -शिमला घूमूँगा
नन्ही ट्रेन रेंगती होगी 
सांप सरीखी -टेढ़ी-मेढ़ी 

सड़क घूमती बारिस होती 
उस सुरंग से बाहर निकले 
पर्वत घाटी देख देख मै
फूला नहीं समाऊंगा  
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चीड़ कहीं तो देवदार हैं
हरे -भरे -सारे पौधे
रंग -बिरंगे फूल खिले हैं
कुदरत के प्यारे बच्चे
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चांदी चमके बर्फ लदी है
मुकुट के जैसे सब धारे

कुछ पल जा के बैठूँगा मै
शीत नदी संग कान उघारे 
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झरने झर झर मोहे मन को
मुक्त बहें- कल-कल वो करते
बादल उड़ते संग -संग खेलें 
स्वर्ग मजा देते-   मन मेरे
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बर्फ में दौडूँ -खेलूँगा मै
स्केटिंग   कर आऊँगा
चिड़िया बन्दर नए नज़ारे
फोटो सभी    उतारूंगा
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इन नदिया झरने सा अम्मा 
मन कहता बहता मै जाऊं
हर आँखों में -हर मन में माँ
बसकर- खींच उन्हें मै लाऊं
पर्वत –घाटी- इस हरियाली 
अमृत रस --के मीठे  पानी
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तप्त ह्रदय भटके भूले जो
कंटक पथ ही वास किये हैं
कोमल नन्हे कर से अपने
उनका माथा मै सहलाऊँ 
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शीत वायु सा -हिम-हिमगिरी सा
कल -कल करती -निश्छल नदिया- सा
शीतल मन उनका मै करके
छाती   तेरी   सदा जुड़ाऊँ !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२३.०६.२०११ जल पी बी
५.०९ पूर्वाह्न
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बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --

Thursday, July 7, 2011

चंगू मंगू की कहानी

चंगू मंगू की कहानी
बारिस के इस झमा -झम मौसम में हमारी तरह से ही सब आनंदित होते है- मजे लेते हैं- सब की अपनी अलग दुनिया देखने की अलग आँखें होती हैं उसी चीज को -आइये इन बच्चों चंगू -मंगू से हम भी बहुत कुछ सीखें -आनंद की अनुभूति करते बढ़ते चलते रहें इस जीवन के कठिन राहों में -
दर्द को भुलाएँ -दर्द का अहसास न करे -मुस्काएं -
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(फोटो गूगल /नेट से १२३ बी आर यफ से साभार )
मिटटी जरा उभारे निकला
झाँक के देखा -इधर उधर
पीला-पीला गाल फुलाए
टर्र टाँय करता बाहर !!
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उछल कूद के फुदक -फुदक कर
माँ के अपने पास गया
सुप्रभात माता श्री कहकर
पहले उनका नमन किया !!
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बोली बेटे क्या विपदा है
आँखें क्यों छलकी हैं तेरी
क्या हमसे कुछ कमी हुयी है
चिंता बढती देख के मेरी
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मंगू फिर रो रो कर बोला
माँ देखो न झम झम बारिस
खेत बाग़ सब भरा पड़ा
गर्मी से मै तप्त हूँ माता
मिटटी में था दबा पड़ा !!
चंगू ने शैतानी की थी
ऊपर चढ़ था लदा खड़ा !!
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गाल फुलाए बड़ा सा मेढक
टर्र टाँय करता आया
बोला बेटा अरे अरे हे !
एक हाथ ना बजती ताली
उसने ही क्या किया सभी कुछ
बात नहीं ये मानने वाली
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पिता श्री मेरी भी गलती -
थोड़ी -मै बतलाता हूँ
मात -पिता से क्या गलती मै
अपनी कभी छिपाता हूँ !!
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छोटे -छोटे बच्चों से चंगू ने
उधम रार-मचाया था
दौड़ -दौड़ वे हांफ रहे थे
उनको बहुत रुलाया था !!
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तब मैंने भी दौड़ा उसको
पानी में था ठेल दिया
जब भी सिर वो जरा निकाले
कूद उसी पर- बैठा था !!
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इसी बात पे क्रोधित हो वो
बातें मुझसे बंद किया
जब मिटटी मै घुस सोया तो
चढ़ा -लदा- वो बंद किया !!
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बे काम का बुरा नतीजा
भूल गए क्या कहती नानी
बच्चे हो पानी -शैतानी
अच्छी बहुत नहीं होती
घर आ के आराम करो अब
माँ तेरी चिंता में रोती!!
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बारिस का था कहर बहुत ही
टी. वी .देखे सहम गए
टर्र टाँय कर फुदक फुदक फिर
तीनो घर में दुबक गए !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर”५
७.७.२०११ जल पी बी


बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --