ये बादल तो अजब
खिलाड़ी
कारे भूरे बादर , मम्मी
उमड़ घुमड़ कर आये
यहीं गांव में
ताक झांक कर
तम्बू आज लगाए
अँधियारा मन खूब
डराता
बिजली जल-जल फिर
बुझ जाये
सर्कस जैसे अजब
तमाशा
जैसे शेर हो गरजे
जाए
भालू हाथी जोकर
जैसे
नाना रूप दिखाते
ये बादल तो अजब
खिलाड़ी
मोती से ये झर-झर झरते
सुन्दर अति संगीत
सुनाते
मेढक मामा की
शादी में
ताल तलैया सब भर
जाते
मम्मी मैं भी
बाहर निकलूं
रिमझिम बारिश
भीगूँ
नाव चलाऊं सीखूँ
तरना
दुनिया सारी
जीतूं ।
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल
भ्रमर ५ कुल्लू हिमाचल
६ मई २०१६
बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --
2 comments:
बहुत सुन्दर ..बारिश का मजा ....प्यारी रचना ..बच्चों के संग खेलना तो मुझे भी बहुत आनंद देता है ..
सुन्दर रचना
भ्रमर ५
baarish me bheegne ki jid krna.... maa ki daat sunna .... aur phr baahr jakar khelna.... mendhak dekhna.... sahi me khoobsoorat kavita!!! bachpan ki yaad dila di
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