BAAL JHAROKHA SATYAM KI DUNIYA HAM NANHE MUNNON KA

Sunday, April 10, 2011

मेरा तोता

बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --
        
         मेरा तोता


सब को प्रिय वह मेरा तोता














(छवि-फोटो साभार-धन्यवाद के साथ अन्य स्रोत से )
जो कुछ खाता उसको देता 
संग बतियाता संग में सोता
उसी जगह-घर-जहाँ मै होता

नहीं कहा-दुर-देता जाता
जाति-नीच-बैठे बस खाता
साध यही -घर आये -खाए
दे आशीष शोर मचाये

डरता हूँ ना वो रट लाये
कैद किया इसने मन भाए
हरा देख अब कुछ पछताए 
साथ खोजकर -उड़ ना जाये 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 
पटना २४..1993 

Saturday, April 9, 2011

The resolution of the year

बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --
The first will be never to yawn,
in public be it noon, dusk or dawn.

The second resolution will be never to race,
because if, then many problem one have to face.

The third will be always do competition,
because it reduce our hesitation.

The fourth will be all things to learn,
which will help us in future to earn.

The fifth will be never to hunt,
by which one can go jail for his stunt.

The sixth will be to make good health,
by which one can get good wealth.

That's all the resolution of this year,
which one have to follow every year.

When we make our years resolution,
We make our life's solution.

By Satyma Shukla
managed by surendra kumar shukla


Thursday, April 7, 2011

मुठीयन भर बाल नोच मार देत पैयाँ"

बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --

आइये आप को हम अपने दर्द से अलग आज बाल- झरोखा दिखाएँ बाल रस हम सब के मन में समां जाये हम बच्चे सा सच्चा मन ले निःस्वार्थ नाच कूद मिल जुल , कभी झगड़ भी पड़ें अगर तो फिर मिल जाएँ -खेलें संग संग गले लगायें -





"मुठीयन  भर बाल नोच मार देत पैयाँ"  
टुकुर टुकुर ताकि मातु ममता की छैंया
किलकि किलकि रोय उठत देखि परछैयां


                     ( फोटो साभार और धन्यवाद के साथ  अन्य स्रोत से )
कबहुं हंसत फिर रिसात लेत ना कनैयां
चीख सुन दौड़ धाय लेत माँ बलैंया
गोद में लुकाय ढाकि आँचरा कि छैयां
गाई गान सुधा पान हरषि हरषि मैया
कोष देत सब लुटाई नाचत अंग्नैया
सो जा ललन लोरी गाई  रही मैया
नटखट वो पलक मूँद -झूंठ- लरकैयां
"मुठीयन  भर बाल नोच मार देत पैयाँ"  
 छनकत कंगना कबहु छनकी पैजनिया
मोहि लेत- बूँद छलकि जात भरी अँखियाँ
उमड़-घुमड़-प्रीति-प्यार-बादरा कि नैंया
खेल रही माँ बिभोर लरकन कि नैया
लहर -लहर -ह्रदय-सिन्धु-चूमि के कलईया 
चूमि मुख गात चूमि पागल सी मैया 
नजर से लुका छिपाई उर में भरत मैया 
कजरा-नैनो में   झाँकि माथ टीकि  पैंया 
"भ्रमर' ख्वाब अंक भरे खोयी हुयी रनिया
खोलि मुख चूमि दोउ नाच -बनी-बतियाँ . 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
..२०११
(लेखन ..१९९६ हजारीबाग झारखण्ड)

Tuesday, April 5, 2011

सच की तू तावीज बंधा दे- मेरी प्यारी " दादी"-" अम्मा"

बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --


 सच की तावीज
दादी माँ मै सोना चाहूं
दे-ना चाहे तो लोरी गाये
मुझे सुला दे !!
दुल्हन दे -या -चाँद खिलौना
थाली में परछाईं या फिर
तारों की बारात दिखा दे
दूध दही टानिक मन चाहे
मुस्काए तो दादी अम्मा
चूने का ही घोल पिला दे
रंग -बिरंगे परिधानों से सज-
गाडी चढ़
कान्वेंट स्कूल भिजा दे
मन क्यों बोझिल??
कागज़ दे लकड़ी के टुकड़े -
प्राईमरी पैदल पहुंचा दे
हवा चले भी कुछ टूटे ना
मुस्काए वे घूम रहे हैं
नम क्यों आँखें -पट्टी बाँधे
चलूँगा मै भी बोझ उठाये 
चलें वे उड़कर वर्दी सजकर -
मेवे खाएं !!
पेट तुम्हारा मै भी भरकर
सर आँखों में तुझे बिठाकर -
चलूँ उठाये !!
महल उठाये नाम कमाए
‘धन’-‘ लालच’ कुछ शीश झुकाए
रोशन तेरा नाम करूँगा -"कुटिया " में
दुनिया खिंच आये
गर्व भरे तू शीश उठाये !!
‘दादी’ –‘माँ’ -सपने ना मुझको
सच की तू तावीज बंधा दे
हंसती रह तू दादी अम्मा
आँचल सर पर मेरे डाले
मार पीट कर उसे गिराकर
‘पहलवान’ जो ना बन पाऊँ
दे ऐसाआशीष’ मुझे माँ
‘आँखों का तारा’ बन जाऊं
 सत्यम शुक्ल 
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
२०.०८.१९९४( लेखन हजारीबाग-झारखण्ड

Friday, April 1, 2011

कितना काम करे तू अम्मा


कितना काम करे तू अम्मा 
अम्मा मुझको नहीं पाल-ना ??
उड़न खटोला ला -दो
पड़ा पड़ा मै थक जाता हूँ
मुझको जरा उड़ा दो
मै पतंग सा चिड़ियों के संग
आसमान उड़ जाऊं
मुक्त फिरूं मै
चंदा तारों के संग खेलूँ
सूरज से मिल आऊँ मै



जैसे तुझको रहा छकाता
रो-रो कर मै तुझे बुलाता 
दौड़ी पल-पल तू  जाये 
चूमे -चाटे दौड़ी जाये

कितना काम करे तू अम्मा???
ऐसे ही मै उन्हें छ्काऊँ
अपनी हरकत बाज  आऊँ
चंदा दौड़ा जो आएगा
पास हमारे
उसे छुपा लूँगा झोले में
दिन निकलेगा
सूरज जो भागा आएगा
चाँद को छोड़ूंउसे जकड लूं
रात हुयी
फिर
अंधकार होते ही अम्मा
भागी दौड़ी तू आएगी
काम छोड़कर
गोदी अपने भर के अम्मा
लोरी मुझे सुना देना
मधुर-माधुरी गा -गा अम्मा
दुनिया सैर करा देना
अवधपुरी-गोकुल -मथुरा सब


"बाल-झरोखा" ला दे-ना
तेरी आँखों में खोया मै
पकडे तेरी ऊँगली अम्मा
दुनिया का सुख पाऊँ
ममता के आँचल में लिपटा
पल भर में सो जाऊं
कितना काम करे तू अम्मा ??
अम्मा मुझको नहीं पाल-ना ??
उड़न खटोला ला -दो

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
बाल झरोखा -सत्यम की दुनिया को समर्पित
..2011