मम्मी मै भी राम बनूँगा
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मम्मी मै भी राम बनूँगा
मम्मी मै भी राम बनूँगा
तीर धनुष मंगवा दो
थोड़े से कुछ वस्त्र राजसी
चूड़ामणि कंगन सारा सब
धोती भी मंगवा दो
दोनों रूप धरूँगा मै तो
राज महल पहले विचरूँगा
फिर गाँधी सी धोती पहने
सन्यासी बनवासी हो माँ
जंगल को निकलूंगा
रोना मत हे माँ ! विनती है
मुझको मत कमजोर तू करना
ममता प्यार जो तेरे आँचल
लिए बलैयां सब दे देना
चौदह साल घोर तप करके
शक्ति सब पाऊँगा
मारे रावन अहिरावन को
मेघनाद की सारी सेना
धूल मिला के
विजयश्री ले आऊँगा
बल बुद्धि सब भर लाऊंगा
आदर्श तेज से अपने माता
ले आशीष तुम्हारा पग-पग
सब को अपना प्यारा प्यारा
रामराज्य दिलवाऊँगा !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
२२.०४.२०११ जल पी.बी.
बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --
6 comments:
सुंदर चित्र सुंदर कविता
प्रिय चैतन्य जी सफल हुआ हमारा रचना
बाल मन को बाल कविता और चित्र प्यारा लगा तो फिर तो बात ही बन गयी धन्यवाद
अपना सुझाव व् विचार भी देते रहें -प्रोत्साहन के साथ
शुक्रिया
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर जी
नमस्कार !
आपकी कविता बहुत कुछ सिखा गयी .
मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं आपके साथ हैं !!
प्रिय मदन जी नमस्कार बड़ी ख़ुशी की बात है की इस रचना ने बहुत कुछ सीख दिया -सचमुच आप ने भी अपनी वास्तविक जिन्दगी माँ ऐसा बहुत कुछ देखा होगा
धन्यवाद आप की प्रतिक्रिया के लिए
शुक्ल भ्रमर ५
देखी रचना ताज़ी ताज़ी --
भूल गया मैं कविताबाजी |
चर्चा मंच बढाए हिम्मत-- -
और जिता दे हारी बाजी |
लेखक-कवि पाठक आलोचक
आ जाओ अब राजी-राजी-
क्षमा करें टिपियायें आकर
छोड़-छाड़ अपनी नाराजी ||
http://charchamanch.blogspot.com/
शुक्रवार-http://charchamanch.blogspot.com/
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