गरज-गरज बादल घिर आया
आज सुबह आंधी बारिस से
मौसम ठंडा हो आया
रिमझिम-रिमझिम बूँद बरस के
गरज -गरज बादल घिर आया
सुबह भी जैसे शाम हो गयी
फिर सोने को जी ललचाया
बालकनी की मस्त हवाएं
बूँदें रिमझिम -लपलप बिजली
कुछ पल मम्मी भीगे -भागे
दौड़ कभी फिर घर घुस आया
मन ललचाता बाहर जाऊं
चिड़ियों ने फिर मुझे सताया
उस फाटक पर ग्रिल खिड़की पर
चिड़ियों ने था डेरा डाला
गौरैया -कोयल-खंजन थी
बुलबुल-कौवा -कठफोड़वा से
सभी चहक कर सीटी दे दे
मेरा मन तो खूब लुभाया
पंख भिगाए -गाल फुलाए
झर -झर पंख कोई झारे
बाल संवारे कोई अपना
फुदक के कोई उसे भगाए
मजा बहुत आया पर मम्मी
मै -मूरति सा खड़ा देखता
घर में जैसे कैद रहा
आगे जाता तो उड़ जातीं
दूजे के सुख की खातिर माँ
जो तूने सिखलाया था
निज आनंद को भूल गया था
उस फुहार रिमझिम बारिस का
माँ -अद्भुत मजा मै ले पाया था !!
शुक्ल भ्रमर ५
२९.०६.२०११
जल पी बी
बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --
6 comments:
रिमझिम बरसात के मौसम पर ...प्यारी कविता
bahut hi acchi kavita hai shukla ji
चैतन्य जी सावन की फुहार का मजा ही अनोखा होता है न -पर अधिक भीगना नहीं चाहिए
कृपया भ्रमर की माधुरी, रस रंग भ्रमर का में भी पधारें
शुक्ल भ्रमर ५
उपेन्द्र शुक्ल जी सचमुच बारिश में भीगना बाल मन ही क्या हमें भी बहुत भाता है पर हल्का हल्का
कृपया भ्रमर की माधुरी, रस रंग भ्रमर का में भी पधारें
शुक्ल भ्रमर ५
बारिश के मौसम में बारिश को याद दिलाती एक अच्छी कविता लिखी है आपने !
इसी पर मेरी और से भी जगजीत सिंह की एक कविता पेश है
ये दौलत भी लेलो ये शोहरत भी लेलो
ले लो ये चाहे मेरी सारी जवानी
पर लौटा दो मेरे बचपन के वो दिन
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी
आज कल http://zealzen.blogspot.com/2011/06/blog-post_22.html?commentPage=२
ब्लॉग पर एक सार्थक बहस चल रही है मेरा निवेदन है कृपया आप भी इसमें शामिल हों !
मदन भाई हार्दिक अभिवादन -प्रोत्साहन -और बारिस का मौसम याद दिलाती जगजीत सिंह की गजल के लिए धन्यवाद
रही zealzen.blogspot.com में भाग लेने की तो यदि समय मिल पायेगा तो कोशिश करेंगे -
आभार आप का
शुक्ल भ्रमर ५
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