बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --
आइये आप को हम अपने दर्द से अलग आज बाल- झरोखा दिखाएँ बाल रस हम सब के मन में समां जाये हम बच्चे सा सच्चा मन ले निःस्वार्थ नाच कूद मिल जुल , कभी झगड़ भी पड़ें अगर तो फिर मिल जाएँ -खेलें संग संग गले लगायें -
"मुठीयन भर बाल नोच मार देत पैयाँ"
टुकुर टुकुर ताकि मातु ममता की छैंया
किलकि किलकि रोय उठत देखि परछैयां
( फोटो साभार और धन्यवाद के साथ अन्य स्रोत से )
कबहुं हंसत फिर रिसात लेत ना कनैयां
चीख सुन दौड़ धाय लेत माँ बलैंया
गोद में लुकाय ढाकि आँचरा कि छैयां
गाई गान सुधा पान हरषि हरषि मैया
कोष देत सब लुटाई नाचत अंग्नैया
सो जा ललन लोरी गाई रही मैया
नटखट वो पलक मूँद -झूंठ- लरकैयां
"मुठीयन भर बाल नोच मार देत पैयाँ"
छनकत कंगना कबहु छनकी पैजनिया
मोहि लेत- बूँद छलकि जात भरी अँखियाँ
उमड़-घुमड़-प्रीति-प्यार-बादरा कि नैंया
खेल रही माँ बिभोर लरकन कि नैया
लहर -लहर -ह्रदय-सिन्धु-चूमि के कलईया
चूमि मुख गात चूमि पागल सी मैया
नजर से लुका छिपाई उर में भरत मैया
कजरा-नैनो में झाँकि माथ टीकि पैंया
"भ्रमर' ख्वाब अंक भरे खोयी हुयी रनिया
खोलि मुख चूमि दोउ नाच -बनी-बतियाँ .
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
८.४.२०११
(लेखन २.६.१९९६ हजारीबाग झारखण्ड)