रात पूर्णिमा का चंदा था
अम्बर था रोशन सारा
टिमटिम टिमटिम चमक रहे थे
नभ में प्यारे सभी सितारे
शीतल बयार भी डोल रही थी
शीत आ रहा बोल रही थी
बादल सी कुछ धुंध दिखी थी
घास पे मोती ओस के
सूरज भी अंगडाई लेते
निकला कितनी देर से
उधर भंवर उस कमल के अन्दर
बंद रात भर सोया था
सुबह सुबह जब फूल खिले तो
आँख मींचते भागा था
चिड़िया भी कुछ गाल फुलाए
चींची चूं चूं कर आयीं
फड फड फड फड पंख फैलाये
शोर मचाये मुझे जगाईं
दिन अब छोटा पड़जाएगा
निशा का पलड़ा भारी होगा
आओ बच्चों हम भी बदलें
दिनचर्या तौर तरीकों को
सर्दी गर्मी से बच रह लें
टोपी मफलर स्वेटर रख लें
ठंडी की लम्बी रातों का
जी भर लुत्फ़ उठायें
चुपके चुपके जी भर पढ़ लें
लम्बी चादर तान तान फिर
गहरी निद्रा में खो जाएँ
सुन्दर मीठे सपने प्यारे
परियां देव दूत का डेरा
मम्मी खुद ही गोद उठाये
सूरज निकला भोर सवेरा
शुक्ल भ्रमर ५ -9.15 A.M.
१९.१०.२०११ जल पी बी
बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --