आओ बच्चों शीतल कर दूं
सारी गर्मी पल में हर लूं
अपने जैसा हरा भरा कर
चेहरा कर दूं लाल टमाटर
पल में सोख पसीना लूं मै
जेठ दुपहरी में तरुवर हूँ
हर पिपासु का कुआँ बड़ा हूँ
कुआँ बड़ा पर द्व़ार खडा हूँ
देखो कुआँ मगर मै आया
मन में ज़रा अहम् ना लाया
तुम भी सब की प्यास मिटाओ
बढे चलो तुम ना शरमाओ
मेरे जैसा शीतल रह के
मन मिठास दिन प्रतिदिन भर के
तरबूजे सा मीठा बन के
दिल अजीज सब के तुम बन के
दुनिया में परचम लहराओ
भर मिठास मुस्कान खिलाओ !
सत्यम शुक्ल
2 2 मई २01 3
बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --