इतनी ढेर किताबें देखो
बस्ता मेरा ढोता
धूप से इनको यही बचाए
बारिस - छाता- होता
कविता रुचिकर देख किताबें
बड़े मजे से ढोता
लेकिन गणित और विज्ञान की
मोटी मोटी देख किताबें
मन में जैसे ये रोता
जिस दिन छुट्टी हो जाती है
दौड़ा-आ -घर में सोता
मेरे बस्ते पर एक कंगारू
हिरन व् हाथी लदा हुआ
बस्ता सब से प्यार है करता
कभी न बोले - हटो जरा !!
( ALL THE PHOTOS TAKEN WITH THANKS FROM GOOGLE/NET)
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२६.०६.२०११ जल पी बी
बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --
12 comments:
Bahut hi pyaru rachna....
Jai hind jai bharat
bahut hi rachna
बहुत प्यारी बाल रचना ..
बड़ी सुंदर है कविता....
सजन आवारा जी धन्यवाद बाल कविता भायी सुन हर्ष हुआ -भ्रमर 5
उपेन्द्र शुक्ल जी रचना को सराहने के लिए आभार
भ्रमर ५
आदरणीया संगीता जी अभिवादन बच्चों हेतु लिखने को प्रोत्साहन देने हेतु आभार भ्रमर ५
चैतन्य जी हार्दिक प्यार बहुत घूम के आये हो अब बस्ता स्कूल ..धन्यवाद
भ्रमर ५
बहुत सुन्दर कविता...आज मेरा बस्ता भी घर में आराम कर रहा है... बारिश के कारण स्कूल आज बंद है|
प्यारी रुनझुन तब तो समझो हमने आप के बस्ते के ऊपर ही लिख दिया मेरा मतलब इसे विषय बनाकर -मौज मनाओ काश हम भी बच्चे होते तो रैनी डे....
अब तो बहुत छुट्टियाँ हैं आगे ..रक्षा तिरंगा ....
भ्रमर ५
bahut hi sundar
विद्या जी रचना सुन्दर लगी सुन हर्ष हुआ आभार
कान्हा किसी भी रूप में आयें दुष्टों का संहार करें अच्छाइयों को विजय श्री दिलाएं ..आन्दोलन सफल हो
...जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाएं आप सपरिवार और सब मित्रों को भी
भ्रमर ५
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