BAAL JHAROKHA SATYAM KI DUNIYA HAM NANHE MUNNON KA

Sunday, May 20, 2012


बब्बर- झब्बर  उस जंगल का राजा
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बहुत वीर हिम्मत वाला था
बब्बर- झब्बर  उस जंगल का राजा
एक दहाड़ में नन्हे मुन्नों
काँप उठें सब जंगल था थर्राता
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बच्चे छुपते माँ की गोदी
सभी जानवर  राह से भागें
जाने किसकी बारी आई
मौत सामने खड़ी कांपते
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बड़े वेग से तूफाँ  जैसे
निकले - पाए जिसको - मारे
रक्त पिए कुछ को खाए वो
रौंद रौंद तड़पाता जाए
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गीदड़ से हों मंत्री – तंत्री
चाटुकार तो राज्य बिगड़ता
अहं सभी को खा जाता है
वेद ग्रन्थ ज्ञानी सब कहता
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सारे जीव ने पंचायत कर
कैसे रोकें नाश हमारा
करी मंत्रणा भाग लिए सब
छोटे-बड़े उपाय सुझाया
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सब ने फिर नत-मस्तक हो के
कहा एक-एक कर  हम आयेंगे
शेर ने सोचा काहे को हम भागें दौड़ें
बिना परिश्रम बैठे-बैठे खा  जायेंगे
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एक एक कर सब बेचारे
काल के मुंह में जाते थे

बड़ा कष्ट था परिजन   रोते   चिल्लाते
अपनी  वलि दे दूजे  को रहे बचाते
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एक शशक था बुद्धिमान
बोला पहले मै जाऊँगा
अगर न हारा जीत गया तो
सब की जान बचाऊँगा
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रो   चिल्ला  के   विदा  किये  सब
राह सोचते  वो बैठा  था
संध्या तक भूखा शेर तडपता
जोर-जोर उछला दिन भर रहा गरजता
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हाथ जोड़ खरगोश कहे हे ! क्षमा करो महराज
भूख आप के बड़ी लगी पर हम ना आये काज
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आ पाया ना सुबह का निकला
दूजा शेर बना राजा कहता तुझको मै खाऊंगा
तेरा वैरी वीर बड़ा है कुए पे बैठा
कहता मै जंगल का राजा !
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ये दौड़ा चीखा - चिल्लाया- उछला- गरजा
कुएं पे आ धमकी देता  - आवाज लगाई
झाँक झाँक पानी में मूरख कूद गया
मुझे बचाओ जोर-जोर दे रहा दुहाई 
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( all photos taken from google/net with thanks )

कौन भला इस  ‘दुष्ट’- राक्षस- पापी को
दे वर - उसकी जान बचाए
सभी ख़ुशी थे 'काल' गया टल
गले मिले – हर्षित-  हर्षाये  !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 
कुल्लू यच पी
१६.५.१२ ७.५०-८.०१ पूर्वाह्न



बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --