अम्मा दौड़ो छाता लाओ
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रिम-झिम रिम-झिम बारिस आई
फूलों पौधों को नहलाई
मंद-मंद पुरवाई आई
झूमे तरु सब पौधे डाली
भोर उठा चिड़ियों संग गाया
देख प्रकृति मन खुश हो आया
हरी घास सब खेत बाग़ वन
परछाई जल में उलटे सब
कागज़ मोड़ा नाव चलाया
खेत बाँध मै नदी बनाया
मेढक दादुर मोर शोर था
नाच रहा मन-मोर जोर था
अम्मा दौड़ो छाता लाओ
मुझको बस तक तो पहुँचाओ
नहीं तो लथ-पथ हो जाऊंगा
सर्दी बुखार ले घर आऊँगा
अच्छीं अच्छीं छींकें आतीं
सिहरन ज्वर अलसाई आती
पुस्तक दोस्त बनाये दूरी
मेरे कारण रात-रात तू जागे पूरी
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छवियाँ गूगल/नेट से साभार
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छवियाँ गूगल/नेट से साभार
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
14.06.2013
5.30-6.0 A.M.
कुल्लू हिमाचल
भारत
बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --
4 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज मंगलवार (25-06-2013) को मंगलवारीय चर्चा-1287--हमें फूलों को सताना नहीं आता में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आदरणीय-
वापस धनबाद आ गया हूँ-
सादर-
आदरणीय शास्त्री जी और आदरणीया राजेश कुमारी जी रोचक और सुन्दर चर्चा ..केदारनाथ की त्रासदी से प्रभु सब को उबारें आओ हम सब मिल कर दुआ करें ,,..मेरे बच्चों के ब्लॉग से अम्मा दौड़ो छाता लाओ को शास्त्री जी ने चुना ख़ुशी हुयी आइये बच्चों को यों ही चर्चा में रखें खुशियाँ बाँटें और लें ..जय श्री राधे
भ्रमर ५
आदरणीय रविकर जी स्वागत है सब कुछ मंगल रहे घर परिवार स्वास्थ्य ....जय श्री राधे
भ्रमर ५
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