BAAL JHAROKHA SATYAM KI DUNIYA HAM NANHE MUNNON KA

Saturday, August 9, 2014

मोती फूलों पर टपकाये

मोती फूलों पर टपकाये
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काले भूरे बादल गरजे
चपला चमक चमक के डराये
छर छर हर हर जोर की बारिश
पलभर भैया नदी बनाये
गली मुहल्ले नाले-नदिया
देख देख मन खुश हो जाये
झमझम रिमझिम बूँदे बारिश
मोती फूलों पर टपकाये
सतरंगी क्यारी फूलों की
बच्चों सा मुस्कायें महकें
वर्षा ज्यों ही थम जाती तो
बन्दर टोली बच्चे आयें
खेलें कूदें शोर मचायें
कोई कागज नाव चलायें
फुर्र फुर्र छोटी चिड़ियाँ तो
उड़ उड़ पर्वत पेड़ पे जायें
व्यास नदी शीतल दरिया में
जल क्रीड़ा कर खूब नहायें
मेरी काँच की खिड़की आतीं
छवि देखे खूब चोंच लड़ाये
मैं अन्दर से उनको पकड़ूँ
अजब गजब वे खेल खिलायें
बहुत मनोहर शीतल शीतल
मलयानिल ज्यों दिन भर चलती
कुल्लू और मनाली अपनी
देवभूममि सच प्यारी लगती
झर-झर झरने देवदार हैं चीड़ यहाँ तो
हिम हिमगिरि हैं बरफ लगे चाँदी के जैसे
हे प्रभु कुदरत तेरी माया, रचना रची है कैसे कैसे
मन पूजे तुझको शक्ति को, सदा बसो मन मेरे ऐसे
सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रम
5.30 am – 5.54 am

  भुट्टी कालोनी, कुल्लू (HP)

बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --

Saturday, June 14, 2014

पिता का त्याग



                                              पूजनीय पिताश्री "भ्रमर" जी   आप को शत शत नमन
आज पितृ दिवस है माता के साथ साथ हमारी जिंदगी में पिता की एक अनोखी और बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है माता पिता जीवन देते हैं एक मिटटी से लोथड़े रुपी बुत में प्राण भरते हैं दिन दिन कितने कष्ट सह कर पाल पोस कर ऊँगली पकड़ चलना सिखाते हैं उसे बड़ा करते हैं गुरु की भाँति सिखाते हैं एक प्रहरी की भाँति दिन रात रक्षा करते हैं प्रेम संस्कार जीवन कला सिखाते हैं और जैसे एक पौधे में बचपन में कील गाड़ दी जाए तो वो आजीवन उसमे धंसी रहती है और अच्छा बुरा अपनी भूमिका तय करती है उसी तरह बालपन में भरे गए हमारे संस्कार नैतिकता प्रेम सहनशीलता त्याग आदर भाव बड़े बड़े छोटे के प्रति यथोचित सम्मान आदि आदि बहुत कुछ जो की यहां वर्णन करना सम्भव ही नहीं आजीवन मानव के काम आते हैं और उसी तरह हमारी जिंदगी की खुशनुमा राह बनती है
पिता का त्याग , दूर पड़े रहना , आजीवन धनोपार्जन में लगे रहना , अपना सुख दुःख भूल किसी तरह से ये सोचना की हमारे लाल या ललना को किसी चीज की कमी नहीं हो उसकी पूर्ति करना
उसकी रक्षा करना उसे नियम नीति गुर सीखना और सबसे बड़ी बात दिल मजबूत करके अपने प्यारे दुलारे को जब जरुरत हो डाँट फटकार कर प्यार से किसी भी तरह से एक सीमा में बांधना अनुशासन सिखाना जो की एक बहुत ही कठिन कार्य है बच्चे जब बड़े होते हैं तो उच्छृंखल नदी झरने सा चल पड़ते हैं उन्हें सही दिशा देना बहुत ही महत्वपूर्ण है उस दशा में बच्चों से दोस्ती निभा प्यार जता की हम आप के शुभ चिंतक हैं संरक्षक हैं मार्ग दर्शक हैं अपना कार्य ठीक से कर ले जाना एक बहुत बड़ी चुनौती होती है पिता के लिए
अक्सर माँ से प्रेम पाते -पाते बच्चे बहक जाते हैं अनुशासन तोड़ने में उन्हें मजा आता है तब पिता की भूमिका बहुत ज्यादा होती है
इस तरह से हम पाते है कि पिता कि हमारे जीवन पथ में एक अहम भूमिका है हमें सदा उनका आदर करना चाहिए और उनके द्वारा कहे गए कड़वे वचन पर भी सोचना चाहिए उनके कर्म और संघर्ष के प्रति उनके प्रति सदा नमन करना चाहिए तभी हमारा जीवन सफल होगा माँ बाप अपने अधूरे सपनों को अपने बच्चों के द्वारा पूरा करते हैं उनका ये सपना सच हो जाए वे सदा खुश रहें आओ आजीवन उन्हें साथ रख हम ये प्रयास करते रहें और उनकी देखभाल तथा भरपूर प्यार दें
सभी पिता को हार्दिक नमन .....
आज पिता जी से बहुत दूर पड़े उनकी यादों में खोये आँखें नम हो जाती हैं बातें ही हो जाती हैं तो लगता है सर पर उनका वरद हस्त और आशीष मिला जीवन धन्य हुआ

गिरीश कुमार शुक्ल 'सत्यम'
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू
हिमाचल १५.६.२०१४


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं




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Sunday, May 11, 2014

हे माँ तू अमृत घट है री


(माताश्री )

हे माँ तू अमृत घट है री
कण कण मेरे प्राण समायी
मै अबोध बालक हूँ तेरा
पूजूं कैसे तुझको माई
बिन तेरे अस्तित्व कहाँ माँ
बिन तेरे मेरा नाम कहाँ ?
तू है तो ये जग है माता
तू ही मेरी भाग्य विधाता
ऊँगली पकडे साहस देती
दिल धड़के जो धड़कन देती
नब्ज है मेरी सांस भी तू ही
गुण संस्कृति की खान है तू ही
देवी में तू कल्याणी है
प्रकृति पृथिव्या सीता तू है
तू गुलाब है तू सुगंध है
पूत प्रीत  ‘माँ ‘ गंगा तू है
धीरज धर्म है साहस तू माँ
लगे चोट मुख निकले माँ माँ
तेरा सम्बल जीवन देता
देख तुझे मै आगे बढ़ता
आँचल तेरा सर है जब तक
नहीं कमी जीवन में तब तक
रश्मि तू सूरज की लाली
बिना स्वार्थ जीवन भर पाली
सारे दर्द बाल के सह के
भूखी प्यासी मेहनत कर के
तूने जो स्थान बनाया
देव मनुज ना कोई पाया
तू मन मस्तिष्क रग रग छायी
पल पल माँ है आँख समायी
आँख सदा बालक पर रखती
पीड़ा पल में जो है हरती
उस माँ को शत नमन हमारा
माँ माँ जपे तभी जग सारा
माँ की ममता बड़ी निराली 
तभी तो पूजे जग-कल्याणी
अंत समय तक माँ संग रखना
 हो जुदा दिल में बस रहना
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 सत्यम शुक्ल ( रचना अपने पिताश्री के ब्लॉग से )


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Sunday, April 27, 2014

जन्म दिन मुबारक सत्यम










प्रिय मेरे नन्हे मुन्ने दोस्तों आदरणीय और प्रिय मित्र गण आज हमारे सुपुत्र  गिरीश कुमार शुक्ल 'सत्यम' का जन्मदिन है इस शुभ अवसर पर जैसे हम दूर दूर से दुवाए दे आज सत्यम का जन्म दिन मना  रहे हैं आप के लिये ये केक और मुख मिठास का यहॉं अयोजन है क़ृपया अपना स्नेहिल आशीष अपने  सत्यम को प्रदान करें आइये बच्चों को भरपूर प्रेम दें और अपनी इस भावी पीढ़ी को अपनी प्यारी संस्कृति और इस भारत भू के प्रेम , प्यार से भर दे ताकि इस भारत भू की रज मे ये पौधे खिलें खिलखिलाएं और इस अपने चमन को अपने सत्कर्मों से गुलजार करें गुल गुलशन महके और हम सब इस फुलवारी का आनन्द ले सकें

आप सब का बहुत बहुत आभार


प्रिय सत्यम ये ख़ुशी का दिन बार बार यूं ही आये प्रभु तुम्हे दीर्घायु करे खुशियाँ फलें फूलें इस ऑगन मे , अपने प्रेम सुकर्मों से सब का मन जीतो सब के प्यारे बनो समाज़ मे अपने अस्तित्व को अपने नाम की छाप बनाओ जन्म दिन मुबारक हो
पिताश्री और समस्त परिवार
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
प्रतापगढ़ भारत

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Tuesday, March 4, 2014

fairwell -




प्रिय दोस्तों और सम्माननीय प्रबुद्ध जन ये रही मेरे कालेज में आयोजित  बारहवीं कक्षा से   विदाई  की  छवियाँ ( सामने से तीसरी पंक्ति में बाएं से दूसरा मै आप का सत्यम )  जिसे  मै आप सब से  सांझा  कर  रहा  हूँ  ,  आप सब बड़े, छोटे कृपया अपना आशीष दें ताकि पढ़ाई  में मन लगे एकाग्रता  बने और मै  परीक्षा में खरा उतरूँ,विदाई तो अश्रुपूर्ण होती ही है जिसके साथ खेला, खाया , चिढ़ा , चिढ़ाया, चुहलबाजी, कैसे उसे छोड़ा जाए लेकिन आगे जहां और भी है आइये चलते चलें बढ़ते फलते फूलते एक दूजे को सहारा देते ...
सभी दोस्तों को मेरा प्रेम भरा नमस्कार और सभी बड़ो को प्रणाम .....जय माँ शारदे वर दे वीणा वादिनि
जय श्री राधे
सत्यम शुक्ल (गिरीश कुमार शुक्ल)
द्वारा सुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर ५
रायबरेली उ. प्रदेश

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Monday, February 24, 2014

' सूरज' मेरा नाम

' सूरज' मेरा नाम
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मै चंदा का साथी प्यारा
'सूरज' मेरा नाम
उजियारा वो रात में देता
दिन में मेरा काम
चंदा के संग लाख सितारे
सौ सौ सूरज मेरे
चंदो को भी मै चमकाऊँ
दिल के पास जो मेरे
वो शीतल है शांत है हिम सा
मै हूँ आग का गोला
मुझमे गैस भरी है दहके
सबको प्राण मै देता
सुबह सवेरे पूरब से मै
निकलूं तुम्हे जगाऊँ
'लाल' ताम्र से हो जाता मै
जब सब सोता पाऊँ
तुम भी जागो प्राण -वायु लो
अमृत-रस पी जाओ
मुझ सा काम सभी के आओ
जग -रोशन कर जाओ
चंदा को 'मामा' कहते हो
सूरज को क्यों 'लाल'
मुझ सा काम करो तुम 'प्यारे'
तेरा चमके 'भाल'
जब चंदा कि बारी आती
देखो मै ना टांग अड़ाता
'पश्चिम' जा मै सो जाता हूँ
उष्की 'रचना' पर खुश होता !
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'५
६.२५ मध्याह्न -६.४५ मध्याह्न
२३.२.२०१४
करतारपुर , जालंधर , पंजाब



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