मोती फूलों पर टपकाये
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काले भूरे बादल गरजे
चपला चमक चमक के डराये
छर छर हर हर जोर की
बारिश
पलभर भैया नदी बनाये
गली मुहल्ले नाले-नदिया
देख देख मन खुश हो जाये
झमझम रिमझिम बूँदे
बारिश
मोती फूलों पर टपकाये
सतरंगी क्यारी फूलों की
बच्चों सा मुस्कायें
महकें
वर्षा ज्यों ही थम जाती
तो
बन्दर टोली बच्चे आयें
खेलें कूदें शोर मचायें
कोई कागज नाव चलायें
फुर्र फुर्र छोटी
चिड़ियाँ तो
उड़ उड़ पर्वत पेड़ पे
जायें
व्यास नदी शीतल दरिया में
जल क्रीड़ा कर खूब
नहायें
मेरी काँच की खिड़की आतीं
छवि देखे खूब चोंच
लड़ाये
मैं अन्दर से उनको पकड़ूँ
अजब गजब वे खेल खिलायें
बहुत मनोहर शीतल शीतल
मलयानिल ज्यों दिन भर
चलती
कुल्लू और मनाली अपनी
देवभूममि सच प्यारी
लगती
झर-झर झरने देवदार हैं
चीड़ यहाँ तो
हिम हिमगिरि हैं बरफ लगे
चाँदी के जैसे
हे प्रभु कुदरत तेरी
माया, रचना रची है कैसे कैसे
मन पूजे तुझको शक्ति
को, सदा बसो मन मेरे ऐसे
सुरेंद्र
कुमार शुक्ल भ्रमर
5.30 am – 5.54 am
भुट्टी
कालोनी, कुल्लू (HP)
बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --