वसुधैव कुटुम्बकम.आइये हम बच्चों की दुनिया"बाल-झरोखा" सत्यम की दुनिया(BAAL-"JHAROKHA"-SATYAM KI DUNIYA)में आप भी बच्चे बन खेलिए न,अपना आशीष दीजिये,कि कल हम आप सब का नाम रोशन कर सकें,इस समाज में कुछ योगदान दे सकें,हम नन्हे मुन्ने- आप की फुलवारी के फूल की खुश्बू हैं- आप के मन की कविता हैं -एक सत्य हैं , अपने गुलदस्ते में हमें सजाइए, शीतल जल से सींचिये गिरीश कुमार शुक्ल "सत्यम" सभी फोटो साभार किसी अन्य स्रोत से -मेरी बातें मेरे पूज्य पिता शुक्ल"भ्रमर" जी आप सब तक पहुंचाएंगे-जय हिंद
BAAL JHAROKHA SATYAM KI DUNIYA HAM NANHE MUNNON KA
Monday, June 26, 2017
खेल- खेल मै खेल रहा हूँ
खेल- खेल मै खेल रहा हूँ
कितने पौधे हमने पाले
नन्ही मेरी क्यारी में
सुंदर सी फुलवारी में !
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सूखी रूखी धरती मिटटी
ढो ढो कर जल लाता हूँ
सींच सींच कर हरियाली ला
खुश मै भी हो जाता हूँ !
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छोटे छोटे झूम झूम कर
खेल खेल मन हर लेते
बिन बोले भी पलक नैन में
दिल में ये घर कर लेते !
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प्रेम छलकता इनसे पल-पल
दर्द थकन हर-हर लेते
अपनी भाव भंगिमा बदले
चंद्र-कला सृज हंस देते !
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खिल-खिल खिलते हँसते -रोते
रोते-हँसते मृदुल गात ले
विश्व रूप ज्यों मुख कान्हा के
जीवन धन्य ये कर देते
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इनके नैनों में जादू है
प्यार भरे अमृत घट से हैं
लगता जैसे लक्ष्मी -माया
धन -कुबेर ईश्वर मुठ्ठी हैं
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कभी न ऊबे मन इनके संग
घंटों खेलो बात करो
अपनापन भरता हर अंग -अंग
प्रेम श्रेष्ठ जग मान रखो
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कभी प्रेम से कोई लेता
इन पौधों को अपने पास
ले जाता जब दूर देश में
व्याकुल मन -न पाता पास !
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छलक उठे आंसू तब मेरे
विरह व्यथा कुछ टीस उठे
सपने मेरे जैसे उसके
ज्ञान चक्षु खुल मीत बनें
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फिर हँसता बढ़ता जाता मै
कर्मक्षेत्र पगडण्डी में
खेल-खेल मै खेल रहा हूँ
नन्ही अपनी क्यारी में
सुन्दर सी फुलवारी में !
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सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्र्मर ५
शिमला हिमाचल प्रदेश
२.३० - ३.०५ मध्याह्न
९ जून १७ शुक्रवार
बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --
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4 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (29-06-2017) को
"अनंत का अंत" (चर्चा अंक-2651)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
प्रकृति के खेल निराले होते हैं उनमें बनावटीपन के लिए कोई जगह नहीं रहती
बहुत सुन्दर रचना
शास्त्री जी बहुत बहुत आभार आप का रचना को आप ने मान दिया और चर्चा मंच के लिए चुना
भ्रमर५
जी कविता जी सच है प्रकृति के खेल मनोरम और सच्चाई को चूमते हुए होते हैं बनावट कहाँ
रचना अच्छी लगी सुन ख़ुशी हुयी
भ्रमर ५
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