बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
बिल्ली बोली म्याऊँ -म्याऊँ
छुपो सभी मै आऊँ
हांफ हांफ कर दौड़ो ना रे
आज तुम्हे ना खाऊँ !!
आज से हमने व्रत है रक्खा
चूहे भाई सुन लो
बहुत हो चुका वैर ये अपना
अब आओ मिल खेलो !
चाहे मेरी पीठ पे बैठो
मूंछें मेरी मरोड़ो
घंटी चाहे गले बांध दो
डर डर मत जीना हे प्यारे
बिल से बाहर निकलो !
चूहा बोला -बिल्ली मौसी
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सुना था हमने कुछ गुण तेरे
नौ सौ चूहे खायी !!
अभी न खाओगी पक्का- क्या ???
क्या हज कर के -हो -आई ?
हम बच्चों को दादी अम्मा
जैसे प्य्रार -करे हैं -
खेलूँगा सब साथ तुम्हारे
जब तेरे दांत गिरे हैं
जब तू भाग नहीं पायेगी
पीछे पीछे मेरे
लेकर तुलसी माला जब
राम -राम बस फेरे !!!
5 comments:
Bahut Suder baal kavita....
बहुत बढ़िया ...मजेदार फोटो और कविता ....
डॉ.मोनिका जी धन्यवाद आप के साहित्य और हिंदी में रूचि के लिए , बाल मन होता ही बड़ा प्यारा है बच्चे मन के सच्चे सारे जग से अच्छे कहा गया हैं न इसीलिए -आइये अपना समर्थन भी दीजिये इसमें प्रोत्साहित करिए न
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
धन्यवाद चैतन्य जी आप ने तो अपने ब्लॉग को बहुत सजाया है बहुत आनंद आता है वहां जाकर हमें भी प्रोत्साहित करियेगा अपना समर्थन भी दिजेयेगा कृपया
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
चैतन्य जी हार्दिक स्वागत आप का प्रथम पूज्य होता है श्रीगणेश के लिए धन्यवाद
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