बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --
अम्मा देखो मेरे जैसा
जुग जुग जिओ हमारे लाल
अम्मा देखो मेरे जैसा
चंदा कैसे खिसक रहा है
चाँद सितारों के संग खेले
मुझसा इतना दमक रहा है
बिना पंख के लेकिन कैसे
अम्मा ऐसे उड़ता जाता ??
जैसे हनुमान हों - पर्वत लेकर
उड़े गगन बादल के संग -संग
बादल पीछे रह -रह जाता
थोडा हमको भी सिखला दे
चिड़ियों से दोस्ती करा दे
बाल्टी भर के दूध पिला दे
काजू और बादाम खिला माँ
कुछ भी कर मेरी प्यारी अम्मा
मुझको भी उड़ना सिखला दे
सूरज चंदा को छू आऊँ
खेलूँ -तुझको और चिढाऊँ
तू भागे मेरे -पीछे -पीछे
कितना मजा मै -खिल खिल जाऊं
तेरे लिए तोड़ तारे माँ
झोली भर के मै ले आऊँ
बाल झरोखा - सत्यम - को आज उसके जन्म दिन पर समर्पित
अम्मा देख न मै कितना बड़ा हो गया अब दौड़ो मेरे पीछे पीछे ...
जुग जुग जिओ हमारे लाल
माँ की अपनी रखना लाज
चरण वंदना उसकी कर के
लेना पग पग तुम आशीष
जहाँ रहो तुम सूरज जैसे
दमके जाओ
कमल के जैसे तुम खिल जाओ
सारे प्यारे
इस दुनिया के
जो हैं न्यारे
दोस्त तुम्हारे
अपनी संस्कृति
अपनी मिटटी
नाम को अपने
मन में धारे
अमर करो
बढे चलो तुम -बढे चलो
जय हिंद जय भारत !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर
२७.४.१९९७
3 comments:
दर्शनप्रशान जी अभिनन्दन है आप का आप आये चुप के से चले गए शब्दों की इतना बचा नहीं रखना चाहिए खरचिये बढेगा -
खुले कमरे में शुद्ध हवा तभी आती है जब खिड़कियाँ खुलें
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
सुंदर कविता ....सत्यम को जन्मदिन की शुभकामनायें
चैतन्य जी आप को भी बहुत शुभ कामनाएं प्यारे दोस्त की प्यारी प्रतिक्रिया पा के तो मजा ही आ गया आप को भी ढेर सारी शुभ कामनाएं अपनी मम्मा का नाम रोशन करते रहें समाज व् देश को बुलंदियों तक ले चलने में सदा ही सहभागी बने
सत्यम की तरफ से
भ्रमर५
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