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Friday, April 29, 2011

गाड़ी हुर्र हुर्र चलवाऊँ

बच्चे मन के सच्चे हैं फूलों जैसे अच्छे हैं मेरी मम्मा कहती हैं तुझसे जितने बच्चे हैं सब अम्मा के प्यारे हैं --

इतनी ढेर किताबें लेकर
मम्मी कैसे जाऊं
छोटे छोटे पाँव ये लेकर
नाप -नाप थक जाऊं
धूप -कभी -बारिस के कारण
लेट कभी हो जाऊं
मैडम सर डांटे तो रोकर  
हिचक सिसक समझाऊँ
होमवर्क सब करवा दो ना
पंडित -बड़ा -जल्द बन जाऊं
पास नर्सरी फिर देखो ना
गाड़ी हुर्र हुर्र चलवाऊँ
डांटू कभी मै बच्चों  को ना
खेल खेल में उन्हें पढाऊँ
आयें छोड़ के रोना धोना
ढेर किताबें कम करवाऊं !!

 सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
३०.०४.२०११

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